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शुक्रवार, 21 मार्च 2014

                                   निराला का प्रकृति चित्रण 


निराला जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं। उनका बादल के समान गम्भीर और विद्रोही व्यक्तित्व उनके प्रकृति वर्णन में भली -भाँति रूप से निखरा है। वे प्रारम्भ से ही प्रकृति वर्णन के गीत लिखते आये हैं ,और परवर्ती कल में भी यह धारा अबाध गति से प्रवाहित होती रही तथा उनके काव्य कि समस्त प्रवर्तियों का दिग्दर्शन उनके प्रकृति -परक काव्य में होता है।
             निराला के लिए प्रकृति जड़ नही है। उन्होंने इसमें सजीवता के दर्शन कर मानवीय भावनाओं का आरोप किया है तथा साथ ही जीवन के साथ उसका तादात्म्य भी स्थापित किया है। इसी कारन उनको प्रकृति कभी रोटी हुई प्रतीत होती है ,कभी हँसती हुई ,कभी प्रेमी -प्रेमिका कि भांति चेष्टा करती हुई प्रतीत होती है। बंगाल की  स्वछंद प्रकृति ने निराला प्रकृति सम्बंधी दृष्टिकोण को उन्मुक्तता प्रदान की  है। उनका बादलों के प्रति विशेष अनुराग है तथा यह अनुराग  'बादल -राग ' कविता में भली -भाँति रूप से दृष्टिगोचर होता है। निम्न उदहारण कवि और बादलों के सम्बंध को घोषित करता है -

                                                पार ले चल तू मुझको 
                                                बहा , दिखा मुझको भी निज 
                                                 गर्जन -भैरव -संसार। 

निराला के प्रकृति चित्रण में बादल के बाद प्रमुख विषय फूल है। फूलों पर आधारित उनकी कविता 'जूही की कलि ' एक प्रभावोत्पादक रचना है। जिसमे जूही की कलि को एक नायक और मलयानिल को एक नायक के रूप में चित्रित किया गया है। इसमें वर्णित प्रकृति के नवीन रूप को देखकर पाठक आश्चर्यचकित हो जाता है निद्रामग्न नायिका के रूप में जूही कि कलि का प्रकृति के माध्यम से मानवीकरण के आधार पर किया चित्रण किया गया एक सुन्दर उदहारण प्रस्तुत है -
                         
                                                 विजन - वन - वल्लरी  पर
                                                 सोती थी सुहाग -भरी -
                                                 स्नेह -स्वपन -मग्न -अमल -कोमल -तनु -तरुणी
                                                 जूही     की      कलि।

उनके प्रकृति चित्रण कि दो प्रमुख विशेषताएँ हैं एक प्रकृति में रहस्यदर्शन और दूसरा उसका मानवीकरण। उन्होंने अपने दार्शनिक भावों की अभिव्यक्ति प्रकृति के माध्यम से की है।  'शेफालिका ' , 'वन बेला ' , 'नर्गिस ' , 'तुम और मैं ' आदि कविताएँ रहस्मयी चेतना का ही बोध कराती हैं।
                इन्होने अन्य छायावादी कवियों कि भांति प्रकृति का मानवीकरण के आधार पर भी चित्रण किया है.इनके लिए प्रकृति सजीव तथा सप्राण है। 'वन कुसुमों की शैय्या' कविता में इन्होने शरद तथा शिशिर ऋतुओं को दो बहनो के रूप में माना है एक उदहारण प्रस्तुत है -
       
                                                  सोती हुई सरोज -अंक पर
                                                  शरत शिशिर दोनों बहनों के
                                                  सुख -विलास -मद -शिथिल -अंग पर
                                                  पदम् -पत्र पंखें झलतें थे।

इसी प्रकार कवी ने मालती और चांदनी को भी दो बहनों के रूप में चित्रित किया है -

                                                  उधर मालती कि चटकी जो कली ,
                                                  चाँदनी ने झट चूमे उसके गोल कपोल ,
                                                  और कहा ,बस बहन ,तुम्हारी सूरत कैसी भोली
                                                  कहा कली ने ,हाँ , और हों ऐसेमीठे बोल।

कवि निराला ने 'संध्या -सुंदरी ' नामक  कविता में भी प्रकृति के नवीन रूप का वर्णन किया है। सायंकाल में मेघमय आसमान से संध्या सुंदरी धीरे धीरे उतर रही है; जिसके अंचल में चंचलता का तनिक भी आभास नही है। उदहारण द्रष्टव्य है -

                                                 दिवसावसान का समय ,
                                                 मेघमय आसमान से उतर रही है
                                                 वह संध्या -सुंदरी परी सी
                                                 धीरे  -     धीरे      -    धीरे
                                                 तिमिरांचल में चंचलता का कहीं नहीं आभास

साथ ही उन्होंने प्रकृति के कोमल तथा कठोर दोनों रूपों का चित्रण किया है। उपर्युक्त समस्त उदहारण प्रकृति के कोमल रूप के व्यंजक हैं। उनके परवर्ती काव्य में इसका उद्दात और परुष रूप प्रधान है।  'तरंग '  , 'बादल' , 'वनबेला ' आदि रचनाएँ इसी कोटि की हैं। उनका बादल तो मानो क्रांति का ही प्रतीक है -

                                                   गरजो ,हे  मंद्र व्रज स्वर ,
                                                   थर्राये  भूधर -भूधर।
                                                   झर -झर -झर -झर धारा झर ,
                                                   पल्लव -पल्लव  पर जीवन।

निराला के काव्य में देखा जाए तो प्रकृति चित्रण की  समस्त विधाएँ उपलब्ध हैं। उन्होंने अपने काव्य प्रकृति के यथार्थ और काल्पनिक दोनों रूपों का चित्रण किया है। सामान्य रूप से कहें तो उनके प्रकृति चित्रण में बाबू गुलाब राय द्वारा निर्दिष्ट प्रकृति चित्रण कि समस्त विधाएँ (उद्दीपनात्मक चित्रण , आलम्बनात्मक चित्रण ,अलंकारिक चित्रण ,प्रतीक चित्रण ,मानवीकरणआदि  ) मिलती हैं। आलम्बनात्मक चित्रण का एक उदहारण प्रस्तुत है -

                                                  छाये आकाश में काले काले बादल देखे ,
                                                  झोंके खाते हवा में सरसों के कमल देखे।
                                                  कानों में बातें बेला और जूही करती थी।,
                                                  नाचते मोर , झूमते  हुए पीपल देखे।

इस प्रकार निराला के काव्य में प्रकृति चित्रण के समस्त अंग विद्यमान हैं प्रकृति उनके लिए मन शांति का भी साधन है और साथ में क्रोध और खीज कि अभिव्यक्ति का भी। निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि निराला जी का प्रकृति  चित्रण एक लीक में नहीं चलता ,वह बहुत व्यापक एंवम विविध है।
                                                  

शनिवार, 15 मार्च 2014

अस्सलामुअलैकुम  आप सभी को।
मैं रिफ़ा रिज़वी जामिया मिलिआ इस्लामिया की स्नातक हिंदी की  छात्रा हूँ।